देहरादून,29 सितंबर,2024 । रविवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से सुपरिचित इतिहासकार डॉ. मदन चंद्र भट्ट, पूर्व प्राचार्य, , राजकीय महाविद्यालय गंगोलीहाट, पिथौरागढ़ की पुस्तक ” हिमालय का इतिहास ” का लोकार्पण किया गया। दून पुस्तकालय के सभागार में किये गए लोकर्पण समारोह की अध्यक्षता गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व इतिहास प्रोफेसर डा सुनील कुमार ने की। वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. विनीत दीक्षित, भाषाविद और विज्ञान लेखिका डॉ. कमला पंत, निदेशक , संस्कृति विभाग, सुश्री बीना भट्ट, और हिंदी और कुमाऊनी साहित्य की विशेषज्ञ व इस पुस्तक के संकलन और संपादन से जुड़ी डॉ.उमा भट्ट अतिथि वक्ता के तौर पर कार्यक्रम में सम्मिलित हुए । कार्यक्रम का संचालन, सामाजिक इतिहास के अध्येता व लेखक डॉ. योगेश धस्माना ने किया।
कार्यक्रम का प्रारंभ उत्तराखंड की पहली महिला इतिहासकार डॉ. शाकमबरी जुयाल के चित्र पर माल्यार्पण एवम दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। यह पुस्तक उनके निर्देशन में आगरा विश्वविद्यालय से किए गए शोध ‘ कुमाऊं गढ़वाल का राजनैतिक इतिहास – प्रारंभ से तेरहवीं सदी ई तक ‘ पर आधारित है। इस पुस्तक में भारतीय इतिहास के तीन महत्वपूर्ण युद्धों पर प्रकाश डाला गया है। पहला बहराइच का युद्ध है जिसमे गजनी के सुल्तान महमूद के सेनापति मसूद को सेना सहित परास्त करने के बाद सुभिक्षराज ने बद्रनाथ के मंदिर को भूमिदान किया। दूसरे युद्ध में दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन को परास्त कर कत्यूरी राजा अशोक मल्ल ने बोधगया में बुद्ध मंदिर का निर्माण कराया। तीसरा युद्ध तैमूर के साथ कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव ने रुड़की के पास पिरान कलियर में लड़ा।
इस शोध में लेखक ने विभिन्न श्रोतों और श्रुतियों के माध्यम से यह तर्क भी रखा है कि मध्यकाल में कुमाऊं और गढ़वाल के अलावा उत्तराखंड में एक तीसरा राज्य ” शिवालिक ” भी था जिसे संस्कृत भाषा में सपादलक्ष कहते थे। डॉ. भट्ट ने अपने सक्रिय शिक्षण काल और सेवा निवृत्ति के बाद भी विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कई लेख लिखे हैं, उनका भी समाकलन इस पुस्तक में किया गया है।
सुपरिचित सामाजिक इतिहासकार प्रोफे.शेखर पाठक के नैनीताल से भेजे गए वक्तव्य को यहां पढ़कर सुनाया गया। उनका कथन था कि हिमालय का इतिहास में डॉ.मदन चन्द्र भट्ट की पिछली तीन किताबों तथा अन्य अनेक लेखों की किसी न किसी रूप में उपस्थिति है। किताब पुरातत्व, ताम्रपत्र, लोक ऐतिहासिक सामग्री और अभिलेखीय साक्ष्यों के साथ विविध साहित्यिक साक्ष्यों का उपयोग करती है। किताब उत्तराखण्ड के इतिहास के अनेक प्रश्नों का हल देती है. अनेक पक्षों से कोहरा हटाती हैं, अनेक को पुनर्परिभाषित करती है. कुछेक को नहीं छूती है और किसी न किसी रूप में अन्य अनेक आयामों को खोजने के सूत्र और उत्साह देती है। यह मूलतः मध्य हिमालय यानी उत्तराखण्ड का इतिहास है।
लोकार्पण समारोह में सम्मानीय अतिथि मंडल ने पुस्तक के परिपेक्ष में उत्तराखंड और हिमालय के इतिहास पर अपने विचार रखते हुए इस तरह के शोध कार्यों को और बढ़ावा देने, हिमालय के इतिहास की महत्ता को समझने और स्थानीय इतिहास के प्रति नई पीढ़ी में जागरूकता बढ़ाने के साथ साथ इतिहास के प्रति एक वैज्ञानिक सोच और नए तकनीकी माध्यमों के व्यापक प्रयोग पर विशेष जोर दिया गया।
इस अवसर पर डॉ.कमल भट्ट, डॉ.जय प्रकाश, प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी, प्रोफे.विमल गैरोला, भारत भूषण,बिजू नेगी, कुसुम रावत, भारती पांडे, डी. के.कांडापाल,बीना जोशी, सुंदर एस बिष्ट, संजय पांडे, राहुल कुमार, मीनाक्षी भट्ट,प्रवीण,प्रोफे.एस.सी.खर्कवाल,मदन सिंह बिष्ट सहित अनेक इतिहासकार, इतिहास प्रेमी, लेखक और युवा पाठक और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।