उत्तराखंड समेत 10 राज्यों में लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण का मतदान पूर्ण हो चुका है। लेकिन इस बार के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं में मतदान को लेकर उदासीनता छायी रही। भाजपा की लाख तैयारियों के बाद उनके पन्ना प्रमुख मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक लाने में विफल रहे। सूबे के कई मतदान केन्द्रों से मतपेटियां खाली आई, तो एक दर्जन से अधिक स्थानों पर सड़क आदि की मांगों को लेकर ग्रामीणों ने जमकर आक्रोश व्यक्त किया और वोट का वहिष्कार किया। वहीं भाजपा प्रत्यासियां के बूथों पर मतदान का प्रतिशत कांग्रेस के प्रत्यासियों की तुलना में काफी कम रहा। मतदाताओं में कई जगह असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। आक्रोश इस बात का था कि सांसद चुनाव जीतने के बाद न फिर कभी जनता के बीच नहीं दिखाई देते है, न कभी यहां के लोगों की समस्यायें संसद में उठाते। न विकास के लिए जरूरी क्षेत्रों में सांसद निधि बांटते है। भाजपा प्रत्यासी सिर्फ पीएम मोदी के नाम पर वोट मांगते रहे और मोदी सरकार की उपलब्धियों गिनाते रहे। जनता सवाल पूछती रही कि भाजपा के टिहरी प्रत्यासी माला राजलक्ष्मी शाह को भाषण भी ठीक से नहीं देना आता तो क्या वह संसद में सिर्फ सीट भरने के लिए चुनी जा रही है? सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र से बेरोजगारी, महंगाई, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जंगली जानवरों के आतंक समेत सभी जमीनी मुद्दे गायब दिखे। यही कारण रहा कि आम जनता मतदान के लिए मतदान केन्द्रों में पंहुचने से कतराती रही। जबकि पीएम मोदी समेत यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमितशाह समेत कई स्टार प्रचारकों ने उत्तराखंड में धुवांधार रैलियों की। बहरहाल गढ़वाल सीट पर भाजपा की कमजोर स्थिति व हरिद्वार सीट पर कांग्रेस के एकतरफा मुस्लिम व दलित वोट मिलने के दावे ने भाजपाईयों के दिलों की घड़कनों को तेज कर दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड की पांचो लोकसभा सीटों पर भाजपा के क्लीन स्वीप का दावे में कोई दम नही है। वैसे भी कम वोटिंग का नुकसान हमेशा से ही सत्ता पक्ष को होता है। क्योंकि जनता की अपक्षायें सत्ता पक्ष से ज्यादा होती है। और उत्तराखंड में बीते 7 साल से अधिक व केन्द्र सरकार में बीते दो कार्यकाल में भाजपा की सरकार विराजमान है। अगर भाजपा उत्तराखंड में पांचों सीटों पर जीत दर्ज नहीं कर पाई तो आने वाले उप चुनावों व निकाय चुनावों में भी इसका असर साफ तौर पर दिखाई देगा। इस बात का भी भाजपा को अभी से चिन्ता सताने लगी हैं। बद्रीनाथ विधान सभा में विधायक राजेन्द्र भण्डारी के भाजपा में सामिल होने पर आम जनता में आक्रोश लगातार जारी है। उप चुनाव में भाजपा प्रत्यासी के तौर पर उनके लिए राह आसान नहीं दिखाई दे रही हैं। इस बात का भी कयास लगाया जा रहा है कि माहौल अगर राजेन्द्र भण्डारी के पक्ष में नहीं होता है तो भाजपा अन्य प्रत्यासी के नाम पर भी मोहर लगा सकती है।