हमेशा विवादों में रहने वाले विश्वविद्यालय का एक और कारनामा सामने आया है जहां 25 दिनों हेतु तैनात एक दैनिक श्रमिक मजदूर को लेखाकार के पद पर रखा गया है।
आए दिन लाखों करोड़ों रुपए के गमन की खबरे लगातार सुर्खियों बटोये हुये हैं इसके वावजूद भी श्री देव सुमन विश्वविद्यालय में लाखों करोड़ों के रुसा के बिलों की जांच, विश्वविध्यालय और परिसर के सैकड़ों अधिकारी, कर्मचारियों के वेतन बिलों की जांच एक दैनिक श्रमिक मजदूर के भरोसे हैं। जो मात्र 25 दोनों हेतु विश्वविद्यालय में ध्याड़ी में कार्यरत है।
एक और जहां विश्वविद्यालय के कुलपति आए दिन शासन का हवाला देते हुए नए-नए फरमान जारी कर रहे हैं तो वहीं दूसरी कुलपति ने लेखा जैसे महत्वपूर्ण पद पर ऐसे व्यक्ति की तैनाती करती है जो दैनिक श्रमिक है जबकि शासन द्वारा समय-समय पर इस संबंध में के निर्देश दिए गए हैं ऐसे गोपनीय कार्यों में जहां वित्त और मान्यता का मामला हो वहां दैनिक श्रमिक को जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती है इसके बावजूद भी दैनिक श्रमिक के भरोसे लेखा विभाग का छोड़ना किसी बड़े घोटाले की आशंका को बोल देता है जबकि विश्वविद्यालय में वर्तमान में नए कर्मचारियों अधिकारियों की भी तैनाती हो चुकी है ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर विश्वविद्यालय के अधिकारी और मुख्य प्रशासन ऐसे व्यक्ति पर क्यों मेहरबान है जिसकी नौकरी तक पक्की नहीं है और जो विश्वविध्यालय से अनुशासनहीनता के चलते दो वर्षों तक बाहर रहा है । ऐसे प्रकरणों में विश्वविद्यालय पहले ही बदनाम हो चुका है।
उधर विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली को लेकर राजकीय महाविद्यालय और निजी महाविद्यालय लगातार आरोप लगा रहे हैं समय पर बिल नहीं हो पता है ना ही बिल भुगतान उन्हें दिया जा रहा है विश्वविद्यालय की कार्य प्रणाली के अंदर इसी बात से लगाया जा सकता है की विश्वविद्यालय में लेखा पद पर तैनात दैनिक श्रमिक मजदूर की खुद की नौकरी तो पक्की नहीं है लेकिन पक्की नौकरी वालों के बिल लटकने में दिन-रात एक कर रहे हैं इस संबंध में महाविद्यालय के अधिकारियों ने भी मोर्चा खोल दिया है और एक गोपनीय पत्र उच्च शिक्षा मंत्री के नाम प्रेषित किया है जिसमें उन्होंने विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं ।